'मामाजी', यूं तो मेरे मामाजी थे पर मुहल्ले के मेरे उम्र के सारे लड़के उन्हें मामाजी ही कहा करते थे।कलकत्ता शहर के समीपवर्ती इलाका हाजीनगर में रहते थे।बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे।आजादी के पहले के थे।उनके बचपन का सुनहरा समय 'बर्मा' और रंगून में बीता था।उनके पिताजी वहां सोने चांदी का व्यापार करते थे।वैसे तो रहने वाले उत्त्र प्रदेश के थे पर रोजी रोटी से पिताजी के जुड़े होने के कारण वो भी वहीं रह रहे थे।उस समय की बातें एवं कई प्रकार की बाते बताते थे जो कि हमारे लिए परी लोक की कथाओं से भी बढ़कर रूचिकर लगता था।हम सदा इस इंतजार में रहते थे कि कब समय मिले और हम कब उनसे मिलने पहुंच जाएं।जब भी कभी वो हमारे यहां आते हम बच्चों की टोली उनको घेर लेती थी कहानियां सुनने के लिए।उनके द्वारा सुनाए गए कहानियों क कुछ अंश :
एक बार की बात है।विश्वयुद्ध पूरे जोरों पर था। सभी लोग अपना सबकुछ समेटकर सुरक्षित निकल जाने के प्रयास में लगे हुए थे।मामाजी के पिताजीह्यनानाजीहृ भी अपना सबकुछ समेटकर निकलने के प्रयास में लगे थे।फौजी गाड़ियों के अलावा कोई साधन न था।आवागमन के हर रास्ते बंद थे।कुछ आगे जाने पर अमेरिकी सेना की एक टुकड़ी मिली सभी लोग परेशान थे।इकलौती जीप खराब जो हो गई थी। किसी के समझ में कुछ नहीं आ रहा था।नानाजी वहीं पास में बैठे यह सब देख रहे थे।उनसे रहा नहीं गया।आगे बढ़ चले सहायता को।हैरानी की बात यह थी की उन्हें गाड़ियों के बारे में कुछ भी पता नहीं था और चले थे गाड़ी ठीक करने।वेशभूषा एवं व्यक्तित्व से दबंग दिखते भी थे।
'क्या बात है साहब क्या परेशानी है?
हमारी गाड़ी खराब हो गई है।अरे मैन टुमसे हो पाएगाॐॐॐ
'कोशिश करके देखते हैं।' नानाजी ने कहा और फिर चारों ओर से मुआयना करने लगे।सभी कौतुहल से उनको देख रहे थे।थोड़ी देर के बाद उन्हें एक तार लटकता हुआ दिखाई दिया।नानाजी ने सोचा 'हो ना हो समस्या इस तार की वजह से है।नानाजी ने कहा कि इस तार को जोड़ो और फिर गाड़ी स्टार्ट करो।
मानो चमत्कारहो गया हो।घर्र की आवाज के साथ गाड़ी स्टार्ट हो गई।फौज के कमांडर ने उनका धन्याद किया और नाम पूछा।नानाजी ने अपना नाम 'बाप' बताया।नानाजी सेना के उस टुकड़ी के सभी लोगों के 'बाप' बन गए।उन्हें उस टुकड़ी के साथ मैकेनिक के रूप में रहने का मौका मिल गया।
युद्ध के बादल कट गए।धीरे धीरे सेना वापसी की ओर मुड़ी।उस टुकडी के कमांडर ने 'बाप' से आग्रह किया कि उनके साथ उनके देश चल चलें ।पर नानाजी को अपने गांव की मिट्टी की सोंधी खुशबू पुकार रही थी और उसके आगे सबकुछ फीका है।नानाजी ने घर जाने की जिद पकड़ लिया।अंत में उन्हें असम के रास्ते लाकर सपरिवार कलकत्ता के पास छोड़कर वह टुकड़ी अपने देश रवाना हो गई।नानाजी अपने गांव की ओर रूख किए।
सोचा था कि गांव पहुंचकर स्वागत होगा।अपने लोग विछुड़े को गले लगाएंगे।पर यह क्या? घर पहुंचते ही परिवार के सदस्यों ने उन्हें परिवार से अलग कर दिया तथा उनके हिस्से की जमीन जायदाद में भी उन्हें नहीं दिया।नानाजी फिर से रास्ते पर आ गए।
क्या करते अपनों से निकाले जाने के बाद 'नानाजी' सपरिवार कलकत्ता आ गए गुजर बसर करने के लिए।उन दिनों मामाजी की उम्र लगभग बारह साल रही होगी।
इतनी कम इम्र और फिर परिवार के ऊपर पड़ा बोझ सबने मिलकर मामाजी को समय के पहले ही समझदार बना दिया।मामाजी ने भी परिवार के भरण पोषण के लिए कुछ करने की ठानी।शरीर हृष्ट पुष्ट था।उन दिनों मनोरंजन के लिए रामलीला एवं नाटक का प्रचलन था।लोगों की भाीड़ उमड़ती थी ऐसे कार्यक्रमों को देखने के लिए।
यहां से मामाजी के जीवन ने एक नई शुरूआत की।मामाजी रंगमंच एवं रामलीला में अभिलनय करने लगे।इसमें उनके छोटे भाई भी उनका साथ देने लगे।धीरे धीरे कलाकार के रूप में परिपक्व होते गए एवं इस क्षेत्र में नाम कमाते गए।रंगमंच पर अधिकतम खलनायक की भूमिका करते थे।कभी बाली तो कभी रावण,कभी कंस तो कभी सुल्ताना डाकू ।ऐसा सजीव अभिनय करते थे कि जैसे वह पात्र जीवंत हो उठा हो।'भाईजी' के नाम से कई शहरों में उन्हें जाना जाने लगा था।बंगाल से लेकर दिल्ली तक उनके अभिनय की तारीफ होती थी।उन्हीं दिनों की एक घटना का जिक्र उन्होंने किया जिसे सुनकर हम हंसते हंसते लोटपोट हो गए।दरअसल परिस्थिति के अनुसार हास्य कैसे मंचन किया जाता है इसका यहा ज्वलंत उदाहरण है यह घटना।
नाटक का मंचन चल रहा था। एक आदमी मामाजी के छोटे भाई से बार बार आग्रह कर रहा था कि उसे भी एक बार मंच पर आकर अभिनय करने का मौका दें।टालते टालते दो दिन हो गया था पर वह मान नहीं रहा था। अनंतः दूसरे दिन मामाजी को उसे मौका देना पड़ा।उससे उन्होंने कहा कि तुम मंच पर आकर माईक और दर्शकों की ओर देखते हुए तीन बार कहोगे “मैं कौन हूं।'
सुझाव के अनुसार वो मंच पर आकर बार “मैं कौन हूं' तीन बार बोला।उसका वाक्य खत्म ही हुआ था कि मामाजी पर्दे के पीछे से बाहर निकले और जोर से बोले, 'तुम बेबकूह हो, गधे हो, सनकी–पागल हो।'
इतना सुनते ही उसने गर्दन झुका लिया तथा गालियां बकता हुआ मामाजी के पीछे दौड़ पड़ा।
दर्शक ठहाके लगाकर हंसते हंसते लोटपोट हो गए।मामाजी मंच से भागे और फिर मंच पर वापस।
बहादुरी में तो मामाजी जैसे मिसाल थे।एकबार दिल्ली रेलवे स्टेशन पर गाडी के आने का इंतजार कर रहे थे।उन दिनों एक अनोखे ढंग की ठगी होती थी दिल्ली में।चलते चलते अचानक एक आदमी अपना बटुआ गिरा देगा।ऐसा जान पड़ता है मानो अनजाने में उससे ऐसा हो गया हो।पीछे से दूसरा आकर उसे उठा लेगा।तबतक एक तीसरा भी प्रकट हो जायेगा और देखने लगेगा कि उस बटुए में क्या है।इस क्रम में दोनों आपस में झगड़ा करने का अभिनय करेंगे।फैसला करवाने के लिए पास के किसी राहगीर के पास जाएंगे और कहेंगे कि इस बटुए में सोना निकला है।दिखा भी देंगे।फिर बंटवारे के नाम पर आपको प्रलोभन देंगे कि इस सोने को एकदम मिट्टि के भाव बेच रहे हैं आप खरीद लें।वस्तु देखने में सोना है प्रतीत होगी पर वास्तव में नकली सोना होता है।यह सब कुछ सुनियोजित ढम्ग से किसी यात्री को लक्ष्य करके किया जाता था।इस झांसे में कई लोग फंस कर धोखा खा जाते हैं।ऐसा अब भी होता है पर प्रकार बदल गया है।मामाजी को भी लक्ष्य करके ऐसी विसात बिछाई गई।सोना गिरा और लोग इसे लेकर मामाजी के पास बेचने का बहाना करके आए। ाांमाजी ने ऐसे हतकंडे बहुत देखे थे।उन्होंने उनपर दोहरी चाल चली।पहले से ही सोचकर बैठे थे कि चार पर तो भारी पड़ते है थे एक दो और आ जाएं तो कोई बात नहीं।इनको क्या ठगते।मामाजी ने उन दोनों को पकड़ लिया और सोना छीन लिया यह कहते हुए कि जिसका बटुआ गिरा था वह मेरा भाई है।लाओ इसे मुझे देकर चलता बनो वर्ना बहुत मार मारूंगा।
अब बारी उन ठगों की थी हैरान होने की।लेकिन ठग तो ठग ही ठहरे।वे एक और हथकंडा चले, पुलिस को बुलाने की।पुलिस के वेष में उनका अपना ही आदमी था।धौंस एवं घूसों की बौछार चली पर जब तीनो को दबोचे मामाजी उनपर चढ़ बैठे तो ठगों ने हाथ जोड़ लिया और मामाजी से माफी मांगत हुए वहां से रफूचक्कर हो गए।
बहुमुखी प्रतिभा के तो थे ही, कला के साथ साथ ज्योतिष एवं तंत्र–मंत्र का भी ज्ञान रखते थे और समय असमय इस विद्या के सहारे लोगों की मदद भी किया करते थे।अच्छे ज्योतिष ज्ञान के धनी होने के कारण लोगो लोगों के खोए हुए सामान अथवा गुम हुए लोगों का लगभग सटीक पता बता देते थे।इनके इस सेवा कार्य ने एक दिन उनको जेल की भी यात्रा करवा दिया।हुआ कुछ यूं कि एक दिन एक सज्जन जिनका लड़का कहीं खो गया था, अपने बच्चे के बारे में पता लगाने के लिए इनके पाास आए।मामाजी ने बच्चा किस शहर में है तथा कि स्थान पर है गणना करके बताया।लोगों को बच्चा मिल गया।बच्चे के पिता ने मामाजी पर अभियोग लगाया कि उसे 'मामाजी' ने ही गायब करवा दिया था।बेचारे बुर फंसे।बाद में किसी तरह से छूट कर आए।
कहते हैं कि कलाकार का दिल बहुत बड़ा होता है पर उम्र के ढलान से उसकी प्रसिद्धि,तेज एवं नाम सबकुछ ढलने लगता है। वक्त के साथ अंतिम पड़ाव के कुछ दिनों पहले मधुमेह के सिकंजे में ऐसा फंसे कि एक समय आया जब दशा खराब हो गई,सही चिकित्सा के अबाव में असमय ही दुनियां से कूच कर गए,पर यादों के झरोखों में लगता है जैसे अब भी कहीं आसपास ही बैठे हों अपने बीते समय के किस्से सुनाते हुए।