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गुरुवार, 29 नवंबर 2012

बक्रेशवर : एक अनोखा धर्मस्थल


        उन दिनों मैं कलकत्ता में था।चिकित्सा कार्य में संलग्न होने के कारण लायंस क्लब की ओर से आयोजित नेत्र जांच शिविरों में शामिल होता रहता था।एक दिन लायन्स क्लब हावड़ा की ओर से तीन दिवसीय आई कैंप में जाने का आमंत्रण मिला।इतनी लम्बी अवधि का कार्यक्रम पहली बार मिला था और फिर नया स्थान देखने का लोभ मैं झट से तैयार हो गया।लगभग 20 ऑप्टोमेट्रिस्टों का दल इस अभियान में शामिल हुआ।पूरे क्षेत्र के  ऑप्टोमेट्रिस्ट इसमें शामिल थे।

        पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले में 'सूरी' सबडिवीजन में आता है यह स्थान।हमारी यात्रा बस द्वारा 'हावड़ा मैदान' के 'लायंस हास्पिटल' से शुरू हुई।सभी अलग अलग स्थानों से आए हुए थे लिहाजा जान पहचान बनाने में कुछ वक्त लग गया।लगभग पंद्रह बीस मिनट के बाद हम सब एक दूसरे को जानने–पहचानने लगे थे।उन दिनों बंगाल की राजनीति में उथल पुथल मचाने वाली एक घटना चल रही थी 'सिंगुर' में 'टाटा मोटर' की नैनो परियोजना को लेकर।अखबारों में तो बहुत कुछ पढ़ने को मिलता था पर उस स्थान को देखने का अवसर इस यात्रा के दौरान हो गया।हमारे गंतब्य के रास्ते में यह स्थान भी मिला।सचमें एक लम्बा चौड़ा इलाका इस काम के लिए लिया गया था,ठीक सड़क के किनारे।चलते रहे हम यँू ही नजारे देखते हुए और नए गीतों के छम्द सुनते हुए।लगभग डेढ़ घंटे की यात्रा करके हम 'बक्रेश्वर' पहुंच गए।

        बक्रेश्वर जैसा कि नाम से ही परिलक्षित होता है, इस स्थान का नाम मुनि अष्टाबक्र के नाम पर रखा गया है।यहां के मंदिर में सबसे अलग बात यह देखने में आता है कि भगवान के पहले भक्त की पूजा की जाती है यानि की 'ऋषि अष्टाबक' की पूजा भगवान शिव की पूजा के पहले की जाती है।ऐसा विश्वास है कि ऋषि अपने समय के विद्वानों में से सर्वोपरि थे।उन्होंने यहां वर्षों भगवान शिव की तपस्या की जिसके फलस्वरूप उन्हें भगवान का आशिर्वाद प्राप्त हुआ।

        नेत्र जांच कैंप यहां के एक आश्रम में लगाया गया था जहां हमारे भोजन का भी प्रबंध था।एक सुदूर ग्रामांचल जहां सुविधाओं के नाम पर शायद कुछ खास नहीं पर एक तीर्थ स्थान एवं भ्रमणस्थल है।साधारण से रहन सहन वाले सच्चे एवं सीधे सादे लोग।चिकित्सा सुविधाएं भी लगभग साधारण ही उपलब्ध।लायंस क्लब की ओर से यहां हर तिमाही इस प्रकार का कैंप लगाया जाता है जिसमें निःशुल्क नेत्र जांच, निःशुल्क चश्मा वितरण एवं आवश्यकतानुरूप शहर लेजाकर 'मोतियाबिंद' के मरीजों का निःशुल्क आपरेशन कराया जाता है।इस कैंप के दौरान यहां के युवा हमारे कार्य में सहयोग भी दे रहे थे तथा यहां के बारे में हमें बता भी रहे थे।यही युवा यात्रियों के लिए गाईड का भी काम करते हैं।

        शाम के समय हम पास के बाजार गए।दशहरा का समय था। बाजार में काफी चहल पहल थी।एक मेला सा लगा हुआ था।ज्यादातर लोग या तो ग्राम्ीण थे या आदिवासी।इनकी भाषा एवं संस्कृति में बंग्ला और भोजपुरी्रझारखंडी भाषा का मेल था।लगता था जैसे यहां आने के बाद बंगला भाषा से मिलकर इन आदिवासियों की भाषा मिली जुली भाषा हो गई हो।शायद इस भाषा को कोई नाम अबतक ना मिला हो क्योंकि पूछने पर लोग इस भाषा का नाम नहीं बता पाए।बहुत ही रंगीन माहौल था।अपने अपने कामों से फारिग होकर हर व्यक्ति  खरिददारी में लगा हुआ था।ऐसा लग रहा था कि यहां  समय एवं काल के हिसाब से बाजार शायद रात में ही लगती है।आवश्यकता एवं उपयोग की हर सामग्री उपलब्ध है।

        दूसरे दिन हम कैंप की जिम्मेदारियों से कुछ हल्का हुए।हमने यहां के दर्शनीय स्थानों पर जाने का कार्यक्रम बनाया।चिकित्सा कैंप में सहायता कर रहे स्थानीय युवा हमारे साथ हो लिए।अधिकतर ये युवा या तो गाईड का काम करते हैं या फिर मंदिर में पुरोहित का।बहुत ही खुशमिजाज एवं व्यवहार कुशल।इस स्थान के बारे में अधिकांश जानकारी उनलोगों द्वारा ही मिली।सबसे पहले हम 'अष्टाबक्र महाराज ' के मंदिर में गए।वहीं से हमारे देव दर्शन की यात्रा शुरू हुई।मंदिर के अंदर माता 'आदि शक्ति' का मंदिर है।कहते हैं कि माता सती के वियोग में जब भगवान शिव उनके शरीर को लिए हुए विक्षिप्त से होकर फिर रहे थे, भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र की सहायता से सती के शरीर के कई टुकड़े किए थे।वो अंश जहां जहां गिरे वहां एक शक्तिपीठ की स्थापना हुई।ऐसे 51 शक्तिपीठ  हैं जिनमें में से एक शक्तिपीठ यहां भी है।यहां माता के भौंहें गिरे थे।अब तो भौंहों के रूप में वहां पाषाण शिला के अंश हैं जिन्हें छूकर अनुभूति की जा सकती है।बड़ा ही पावन स्थल है।

        यहां से कुछ दूरी पर एक ताप विद्युत केंद्र है।इस स्थान की सबसे अनोखी बात यह है कि मंदिर के पास ही दस कुंड बने हुए हैं जिनमें से अधिकांश में से खौलते हुए पानी को निकलता हुआ देखा जा सकता है।इन खौलते हुए जल का तापमान कहीं 65 से लेकर 80 डिग्री सेल्सीयस तक होता है।अलग अलग नामों से अलंकृत अलग अलग कुंड ।इन कुंडों को गंगा का ही रूप माना जाता है तथा इनके नाम के साथ गंगा शब्द जुड़ा हुआ है जैसेः पापहरण गंगा, बैतरणी गंगा, खार कूंड, भैरव कुंड, अग्नि कुंड, दूध कुंड, सूर्य कुंड, श्वेत गंगा, ब्रम्ह कुंड, अम्रित कुंड।इन कुंडों से निकलने वाले जल में बहुत सारे रसायन मिले हुए हैं और कहा जाता है कि इनमें औषधीय गुण भी है।स्थानीय लोगों के अनुसार गर्म जल के इन कुंडों के रहस्य को जानने के लिए खोज एवं जांच कार्य जारी है।
        तीन दिनों का यहां का सफर हमारे लिए एक अवसर दे गया कि हम अपने देश के ऐसे सुदूर स्थानों पर स्थित लोगो एवं संस्कृति को देख और जान सकें।रेल तथा सड़क मार्ग से भी यहां पहुंचा जा सकता है।हावड़ा स्टेशन से लोकल ट्रेन बहुतायत रूप में उपलब्ध हैं।

       

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