राजनीति
में कुछ भी अंतिम नहीं होता , कोई अपना नही होता । अब अपने कलेश्वर
को ही लीजिये , एक समय था सबको दिखाने के लिए , अपनी साख बचाने के लिए महामंत्री के पद से त्यागपत्र दे दिये तथा परोक्ष रूप
से शासन चलाने के उद्देश्य से बलेश्वर को महामंत्री के पद पर बैठा दिये । सोचा होगा
कि ये तो कुछ कहेगा नहीं और हम पर्दे के पीछे रहकर सत्ता चलाएँगे , आखिर राज तो अपना ही है । बलेश्वर सब बात मानेंगे ही । समय करवट बदलता है , कुछ
दिन तो बलेश्वर वही क़हत ए रहे जो कलेश्वर कहते जाते । पर जैसे ही दाव पेंच सीख गए , घुमाके पटकनी दे दिये । सत्ता के गलियारे में खबर उठी की जल्दी ही बलेश्वर
को सत्ता से निकालकर कलेश्वर फिर से महामंत्री बनने जा रहे हैं । दल के फैसले में यह
तो तय हो गया कि बलेश्वर को हटाकर कलेश्वर पदासीन होंगे , पर
स्थिति ऐसी हैं कि यदि बलेश्वर अपने पद से इस्तीफा नहीं देते तो कलेश्वर कैसे पदासीन
होंगे । जनता ने कलेश्वर को यह भी कहते हुए पाया कि जरूरत हुई तो हम अपने समर्थक मंत्रियों
का परेड करवा देंगे , दिखा देंगे कि किसमे कितनी ताकत है । कयास
लगाया जा रहा है कि कलेश्वर अपने समर्थक विधायकों के साथ किसी अन्य दल में शामिल हो
सकते हैं , या फिर उस दल के सहयोग से सरकार बनाने का दावा पेश
कर सकते है । अब यह तो रंगमंच ही तय करेगा कि कौन जीतेगा । जो भी हो इस क्रम में अपने
दल का दो फाड़ होना तो तय है । अब देखा जाये कि ऊंट किस करवट बैठता है और किसे क्या
मिलता है ।
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