हवाएं

शनिवार, 24 मार्च 2012

बचपन ऐसा ही होता है

ऐसा है मेरा देश

कितना सुन्दर है हमर देश और कितनी सुन्दर है इसकी परम्पराएं .आज भी लोग अपने पूर्वजों के बारे में कितने अछे से बताते  हैं और फिर कितने महान थे हमारे वो पूर्वज .आज की तारिख में भले ही यह बात अजीब सी लगे की कभी कोई ऐसा भी रहा होगा की की उसने पृथ्वी पर नदी को लेन की लिए परिश्रम किया हो क्योंकि विज्ञानं इस बात को नहीं मानता है . पर यिद हम देखे तो लगता है की कैसे इतनी सरलता से उन लोगो ने हमें प्रकृति से जोड़ने के लिए क्या नहीं किया और येही बात है की हमारे देश में   सब कुछ होने के बाद भी प्रकृति से स्नेह रखनेवाले कम नहीं हैं.नदी को माता मानकर उसकी पूजा करना , पठार को भगवन मानना एक अंधविश्वास नहीं अपितु प्रकृति से लगाव बढ़ाने का जरिया है.इसी परिपाटी का उदहारण है और जोड़ है साधू संतो का होना, उनके द्वारा दिखाए जाने वाले रस्ते सब कुछ उसी का एक स्वरुप है जिसमे हम संरक्षरण की कला जान कर प्रकृति को बचने का उपक्रम करते हैं.
 इस देश में ऐसे भी माँ बाप हैं जो अपने कलेजे पर पत्थर रखकर अपने बछो को साधू बन्ने के लिय जग कल्याण हेतु भेज देते हैं.
 

ब्लॉगिंग की दुनिया में मेरा पहला कदम