हवाएं

शनिवार, 20 सितंबर 2014

कविता : वादियों में एक बर्फीली शाम




दूर गगन की छाँव  में
तन्हा था वो गाँव,
घनी वादियाँ  ढकी हुई थी बर्फीले चादर में ,
इन का मालिक, शायद परिचित था मेरा कोई,
रहता था वो दूर कहीं ।
मेरे आने, रुकने की आहात
देख नहीं सकता था वो अभी ।

मेरा साथी  ,चेतक मेरा
चौंक उठा मेरे रुकने पर ,
ना कहीं छाया , ना कोई ठौर
क्यों बढ़ आया था मैं इस ओर ,
हल्के झोंके से  रोका उसने,
अपनी भाषा में टोका उसने
क्यों बढ़ आया था मैं इस ओर ।

खूब घनी अप्रतीम सुंदर हो तुम
पर कुछ वादा मुझको है निभाना,
ऐ वादियों ना ठहरूँगा अभी ,
दूर मुझे है जाना ।

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