दूर गगन की छाँव
में
तन्हा था वो गाँव,
घनी वादियाँ ढकी
हुई थी बर्फीले चादर में ,
इन का मालिक, शायद परिचित था मेरा कोई,
रहता था वो दूर कहीं ।
मेरे आने, रुकने की आहात
देख नहीं सकता था वो अभी ।
मेरा साथी ,चेतक
मेरा
चौंक उठा मेरे रुकने पर ,
ना कहीं छाया , ना कोई ठौर
क्यों बढ़ आया था मैं इस ओर ,
हल्के झोंके से
रोका उसने,
अपनी भाषा में टोका उसने
क्यों बढ़ आया था मैं इस ओर ।
खूब घनी , अप्रतीम सुंदर हो तुम
पर कुछ वादा मुझको है निभाना,
ऐ वादियों ना ठहरूँगा अभी ,
दूर मुझे है जाना ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें