हवाएं

मंगलवार, 18 जुलाई 2023

Certificate course in Translation केवल 3 महीने का कर SSC JHT के लिए elig...

Admission link


💫
*अहमदनगर कॉलेज, अहमदनगर*( सावित्री बाई फुले पुणे विश्वविद्यालय से संबद्ध )*के हिंदी विभाग* *की* *ओर से अनुवाद का* *सर्टिफिकेट कोर्स* *ऑनलाइन* *शुरू किया जा रहा है।

_आज दुनिया के सभी देश एक_- दूसरे से जुड़े हैं, जिसमें भाषा  महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है । इस अनुवाद के कोर्स से आप अनुवादक  तथा हिंदी अधिकारी के रूप में काम करने के लिए अपने- आप को तैयार कर सकते  हैं।

🌟
Today's multicultural and multilingual society needs effective and efficient communication between languages and cultures. Practical application of translation will help students to apply as Official language officers in government offices like Bank , Railways, Defence , BSNL, etc.

 *_Name of the course_ :* *Certificate course in* *Translation studies. Hindi to English and vice versa* 
 *Organising Department:* *Department of Hindi* 
 *Name of the coordinator* : *Dr* . *Poornima B.Behere* 
 *Head of the department* : *Prof. Dr.* *Richa Sharma* 
 *Eligibility for admission* : *10+2 ( any* *stream)* 
 *Duration of course* :  *3* *months* 
 *Fees  : ₹ 1500
( U.G  Students can earn 2 credit points by joining this course)

🛑
*Mode of class is ONLINE*

📲
 _For further details_ _contact_
 Coordinator: 9325331641
HOD : +91 93702 88414

🗓️
*Last day to fill the form  is 20 July 2023*

 *Classes will be on Saturday  and Sunday from 6 pm to 8 pm


रविवार, 8 फ़रवरी 2015

गली कूचा -2

खबरों में देखा कि हमारे मित्र के मुहल्ले में अशांति का माहौल है । पिछले कुछ दिनों से रैपिड एक्शन टीम मुहल्ले में डेरा डाले हुए पड़ी है । लोगों में भय एवं अनिश्चितता का माहौल है । कुछ लोगो ने तो अपने बाल बच्चों को कहीं सुरक्षित स्थान पर भेज दिया । क्या पता कल क्या हो जाए । औद्योगिक इलाका , मजदूरो की श्रेणी अधिक है जिन्हे  रोज कमाना और रोज खाना है । कल कारखाने भी बंद हैं । जाएँ तो जाएँ कहाँ वाली स्थिति पैदा हुई है ।
घटना की तह मे जाकर तहक़ीक़ात किया तो पता लगा कि मुद्दा कुछ खास नहीं है । एक समुदाय की धार्मिक शोभायात्रा चल रही थी । इसमें कुछ शरारती तत्वों ने विघ्न पैदा कर दिया । यात्रा करने वालों के साथ मार पीट और अभद्रता की गई । ऐसा नहीं कि उस यात्रा में शामिल लोगों ने इस अभद्रता को सहन किया हो । उन्होने भी सामर्थ्य भर प्रतिकार तो किया ही । बस विरोध का जामा चढ़ गया और हल्का फुल्का झगड़ा कौमी रंग में ढल गया । तलवारें खींच गई और लड़ाइयाँ होने लगी । आनन फानन में प्रशासन ने कर्फ़्यू लगा दिया । कुछ भय और आतंक से तो कुछ पुलिस द्वारा अरेस्ट होने का डर , सबको शांत किए था । मनौवल का दौर चला । जिसकी कोई जरूरत भी नहीं थी वह भी दल का मुखिया बन समझौते के उद्देश्य से बैठकें करने लगा । शांति बहाल कने के लिए कोई भी तैयार नहीं था । किसी ने भी स्कूल जाने वाले उन बच्चों के बारे में नहीं सोचा जिनकी परीक्षा चल रही थी जो इस हंगामे को भेंट चढ़ गयी , अब बेचारों को एक साल और परिश्रम उसी क्लास  में करना  पड़ेगा । उन मजदूरों के बारे में किसी ने नहीं सोचा जो बड़ी मुश्किल से दो जून की रोटी की किसी तरह से जुगाड़ कर पाता था , आज सात दिन से घर में भूखा बैठा है । किसी ने उन बीमार जनों की सुध नहीं ली जो इस घटना के प्रारम्भ में चोट खाये हुए अस्पताल मे पड़े हुए थे । सब अपने अपने आन के लिए लगे हुए थे विरोध  करने में । लगभग सौ से अधिक जवान शांति भंग करने के आरोप में कहें या फिर शांति बनाए रखने के लिए पुलिस के हत्थे चढ़ कर जेल के सलाखों के पीछे बैठे हैं , उन्हे आजाद करवाने की सुध किसी ने भी नहीं ली ।
 हमारी चमेली ने पूछा कि," यदि किसी की सरकारी नौकरी लगती है तो उसका पुलिस द्वारा जांच किया जाता है , बेदाग साबित होने पर ही नौकरी रहती है । अब ऐसे में उन नौजवानो का क्या होगा जिनहे पुलिस पकड़ कर ले गयी है । उनके भविष्य और सरकारी नौकरी का क्या होगा । " अब इस प्रश्न का उत्तर मेरे पास भी नहीं था पर एक मेघावी वाणी ने यह कहा उसकी बाद में देखेंगे , अभी तो आन बान और शान की लड़ाई है । अभी इससे निपटते हैं । मैं ये नही समझ पाया कि उन नौजवानो के शान का क्या होगा जो सलाखों के पीछे पड़े हैं ।
विचार हुआ जरा उनका जायजा लिया जाए जो इस घटना के सूत्रपात के समय थे । उनलोगों की पीड़ा देख यह बवाल मचा था । पता लगा उन्हे कोई समस्या नहीं है । वो तो अपनी दिनचर्या में आराम से मशगूल हैं , कही किसी प्रकार का विरोधात्मक आभास नहीं है । मुझे याद आया उन बच्चों की कहानी जो एक खिलौने के लिए आपस मे  लड़ पड़े थे । उनकी लड़ाई देख दोनों के परिवारवाले आपस में गुत्थमगुत्था हो गए , एक दूसरे के जान के प्यासे हो गए । थोड़ी देर बाद दोनों बच्चे फिर से साथ खेलते नजर आए पर उनके घरवाले आपस में लड़ते नजर आए । यही तो यहाँ भी होता दिख रहा है । घटना के सूत्रपात और सूत्रधार दोनों मजे में है और बाकी जनता आपस में लड़े जा रही है । देखें कब पटाक्षेप होता है इस अल्पयुद्ध का ।

गली कूचा

राजनीति में कुछ भी अंतिम नहीं होता , कोई अपना नही होता । अब अपने कलेश्वर को ही लीजिये , एक समय था सबको दिखाने के लिए , अपनी साख बचाने के लिए महामंत्री के पद से त्यागपत्र दे दिये तथा परोक्ष रूप से शासन चलाने के उद्देश्य से बलेश्वर को महामंत्री के पद पर बैठा दिये । सोचा होगा कि ये तो कुछ कहेगा नहीं और हम पर्दे के पीछे रहकर सत्ता चलाएँगे , आखिर राज तो अपना ही है । बलेश्वर सब बात मानेंगे  ही । समय करवट बदलता है , कुछ दिन तो बलेश्वर वही क़हत ए रहे जो कलेश्वर कहते जाते । पर जैसे ही दाव पेंच सीख गए , घुमाके पटकनी दे दिये । सत्ता के गलियारे में खबर उठी की जल्दी ही बलेश्वर को सत्ता से निकालकर कलेश्वर फिर से महामंत्री बनने जा रहे हैं । दल के फैसले में यह तो तय हो गया कि बलेश्वर को हटाकर कलेश्वर पदासीन होंगे , पर स्थिति ऐसी हैं कि यदि बलेश्वर अपने पद से इस्तीफा नहीं देते तो कलेश्वर कैसे पदासीन होंगे । जनता ने कलेश्वर को यह भी कहते हुए पाया कि जरूरत हुई तो हम अपने समर्थक मंत्रियों का परेड करवा देंगे , दिखा देंगे कि किसमे कितनी ताकत है । कयास लगाया जा रहा है कि कलेश्वर अपने समर्थक विधायकों के साथ किसी अन्य दल में शामिल हो सकते हैं , या फिर उस दल के सहयोग से सरकार बनाने का दावा पेश कर सकते है । अब यह तो रंगमंच ही तय करेगा कि कौन जीतेगा । जो भी हो इस क्रम में अपने दल का दो फाड़ होना तो तय है । अब देखा जाये कि ऊंट किस करवट बैठता है और किसे क्या मिलता है । 

शनिवार, 20 सितंबर 2014


वादियों में एक बर्फीली शाम



वादियों में एक बर्फीली शाम
बिनय कुमार शुक्ल

दूर गगन की छाँव  में
तन्हा था वो गाँव,
घनी वादियाँ  ढकी हुई थी बर्फीले चादर में ,
इन का मालिक, शायद परिचित था मेरा कोई,
रहता था वो दूर कहीं ।
मेरे आने, रुकने की आहात
देख नहीं सकता था वो अभी ।

मेरा साथी  ,चेतक मेरा
चौंक उठा मेरे रुकने पर ,
ना कहीं छाया , ना कोई ठौर
क्यों बढ़ आया था मैं इस ओर ,
हल्के झोंके से  रोका उसने,
अपनी भाषा में टोका उसने
क्यों बढ़ आया था मैं इस ओर ।

खूब घनी ,अप्रतीम सुंदर हो तुम
पर कुछ वादा मुझको है निभाना,
ऐ वादियों ना ठहरूँगा अभी ,
दूर मुझे है जाना ।

कविता : वादियों में एक बर्फीली शाम




दूर गगन की छाँव  में
तन्हा था वो गाँव,
घनी वादियाँ  ढकी हुई थी बर्फीले चादर में ,
इन का मालिक, शायद परिचित था मेरा कोई,
रहता था वो दूर कहीं ।
मेरे आने, रुकने की आहात
देख नहीं सकता था वो अभी ।

मेरा साथी  ,चेतक मेरा
चौंक उठा मेरे रुकने पर ,
ना कहीं छाया , ना कोई ठौर
क्यों बढ़ आया था मैं इस ओर ,
हल्के झोंके से  रोका उसने,
अपनी भाषा में टोका उसने
क्यों बढ़ आया था मैं इस ओर ।

खूब घनी अप्रतीम सुंदर हो तुम
पर कुछ वादा मुझको है निभाना,
ऐ वादियों ना ठहरूँगा अभी ,
दूर मुझे है जाना ।

गुरुवार, 29 नवंबर 2012

मामाजी



        'मामाजी', यूं तो मेरे मामाजी थे पर मुहल्ले के मेरे उम्र के सारे लड़के उन्हें मामाजी ही कहा करते थे।कलकत्ता शहर के समीपवर्ती इलाका हाजीनगर में रहते थे।बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे।आजादी के पहले के थे।उनके बचपन का सुनहरा समय 'बर्मा' और रंगून में बीता था।उनके पिताजी वहां सोने चांदी का व्यापार करते थे।वैसे तो रहने वाले उत्त्र प्रदेश के थे पर रोजी रोटी से पिताजी के जुड़े होने के कारण वो भी वहीं रह रहे थे।उस समय की बातें एवं कई प्रकार की बाते बताते थे जो कि हमारे लिए परी लोक की कथाओं से भी बढ़कर रूचिकर लगता था।हम सदा इस इंतजार में रहते थे कि कब समय मिले और हम कब उनसे मिलने पहुंच जाएं।जब भी कभी वो हमारे यहां आते हम बच्चों की टोली उनको घेर लेती थी कहानियां सुनने के लिए।उनके द्वारा सुनाए गए कहानियों क कुछ अंश :
        एक बार की बात है।विश्वयुद्ध पूरे जोरों पर था। सभी लोग अपना सबकुछ समेटकर सुरक्षित निकल जाने के प्रयास में लगे हुए थे।मामाजी के पिताजीह्यनानाजीहृ भी अपना सबकुछ समेटकर निकलने के प्रयास में लगे थे।फौजी गाड़ियों के अलावा कोई साधन न था।आवागमन के हर रास्ते बंद थे।कुछ आगे जाने पर अमेरिकी सेना की एक टुकड़ी मिली सभी लोग परेशान थे।इकलौती जीप खराब जो हो गई थी। किसी के समझ में कुछ नहीं आ रहा था।नानाजी वहीं पास में बैठे यह सब देख रहे थे।उनसे रहा नहीं गया।आगे बढ़ चले सहायता को।हैरानी की बात यह थी की उन्हें गाड़ियों के बारे में कुछ भी पता नहीं था और चले थे गाड़ी ठीक करने।वेशभूषा एवं    व्यक्तित्व से दबंग दिखते भी थे।

        'क्या  बात है साहब क्या परेशानी है?
        हमारी गाड़ी खराब हो गई है।अरे मैन टुमसे हो पाएगाॐॐॐ

        'कोशिश करके देखते हैं।' नानाजी ने कहा और फिर चारों ओर से मुआयना करने लगे।सभी कौतुहल से उनको देख रहे थे।थोड़ी देर के बाद उन्हें एक तार लटकता हुआ दिखाई दिया।नानाजी ने सोचा 'हो ना हो समस्या इस तार की वजह से है।नानाजी ने कहा कि इस तार को जोड़ो और फिर गाड़ी स्टार्ट करो।
        मानो चमत्कारहो गया हो।घर्र की आवाज के साथ गाड़ी स्टार्ट हो गई।फौज के कमांडर ने उनका धन्याद किया और नाम पूछा।नानाजी ने अपना नाम 'बाप' बताया।नानाजी  सेना के उस टुकड़ी के सभी लोगों के 'बाप' बन गए।उन्हें उस टुकड़ी के साथ मैकेनिक के रूप में रहने का मौका मिल गया।
        युद्ध के बादल कट गए।धीरे धीरे सेना वापसी की ओर मुड़ी।उस टुकडी के कमांडर ने 'बाप' से आग्रह किया कि उनके साथ उनके देश चल चलें ।पर नानाजी को अपने गांव की मिट्टी की सोंधी खुशबू पुकार रही थी और उसके आगे सबकुछ फीका है।नानाजी ने घर जाने की जिद पकड़ लिया।अंत में उन्हें असम के रास्ते लाकर सपरिवार कलकत्ता के पास छोड़कर वह टुकड़ी अपने देश रवाना हो गई।नानाजी अपने गांव की ओर रूख किए।
        सोचा था कि गांव पहुंचकर स्वागत होगा।अपने लोग विछुड़े को गले लगाएंगे।पर यह क्या? घर पहुंचते ही परिवार के सदस्यों ने उन्हें परिवार से अलग कर दिया तथा उनके हिस्से की जमीन जायदाद में भी उन्हें नहीं दिया।नानाजी फिर से रास्ते पर आ गए।
        क्या करते अपनों से निकाले जाने के बाद 'नानाजी' सपरिवार कलकत्ता आ गए गुजर बसर करने के लिए।उन दिनों मामाजी की उम्र लगभग बारह साल रही होगी।
        इतनी कम इम्र और फिर परिवार के ऊपर पड़ा बोझ सबने मिलकर मामाजी को समय के पहले ही समझदार बना दिया।मामाजी ने भी परिवार के भरण पोषण के लिए कुछ करने की ठानी।शरीर हृष्ट पुष्ट था।उन दिनों मनोरंजन के लिए रामलीला एवं नाटक का प्रचलन था।लोगों की भाीड़ उमड़ती थी ऐसे कार्यक्रमों को देखने के लिए।
        यहां से मामाजी के जीवन ने एक नई शुरूआत की।मामाजी रंगमंच एवं रामलीला में अभिलनय करने लगे।इसमें उनके छोटे भाई भी उनका साथ देने लगे।धीरे धीरे कलाकार के रूप में परिपक्व होते गए एवं इस क्षेत्र में नाम कमाते गए।रंगमंच पर अधिकतम खलनायक की  भूमिका करते थे।कभी बाली तो कभी रावण,कभी कंस तो कभी सुल्ताना डाकू ।ऐसा सजीव अभिनय करते थे कि जैसे वह पात्र जीवंत हो उठा हो।'भाईजी' के नाम से कई शहरों में उन्हें जाना जाने लगा था।बंगाल से लेकर दिल्ली तक उनके अभिनय की तारीफ होती थी।उन्हीं दिनों की एक घटना का जिक्र उन्होंने किया जिसे सुनकर हम हंसते हंसते लोटपोट हो गए।दरअसल परिस्थिति के अनुसार हास्य कैसे मंचन किया जाता है इसका यहा ज्वलंत उदाहरण है यह घटना।
        नाटक का मंचन चल रहा था। एक आदमी मामाजी के छोटे भाई से बार बार आग्रह कर रहा था कि उसे भी एक बार मंच पर आकर अभिनय करने का मौका दें।टालते टालते दो दिन हो गया था पर वह मान नहीं रहा था। अनंतः दूसरे दिन मामाजी को उसे मौका देना पड़ा।उससे उन्होंने कहा कि तुम मंच पर आकर माईक और दर्शकों की ओर देखते हुए तीन बार कहोगे “मैं कौन हूं।'
        सुझाव के अनुसार वो मंच पर आकर बार  “मैं कौन हूं' तीन बार बोला।उसका वाक्य खत्म ही हुआ था कि मामाजी पर्दे के पीछे से बाहर निकले और जोर से बोले, 'तुम बेबकूह हो, गधे हो, सनकी–पागल हो।'
        इतना सुनते ही उसने गर्दन झुका लिया तथा गालियां बकता हुआ मामाजी के पीछे दौड़ पड़ा।
        दर्शक ठहाके लगाकर हंसते हंसते लोटपोट हो गए।मामाजी मंच से भागे और फिर मंच पर वापस।
        बहादुरी में तो मामाजी जैसे मिसाल थे।एकबार दिल्ली रेलवे स्टेशन पर गाडी के आने का इंतजार कर रहे थे।उन दिनों एक अनोखे ढंग की ठगी होती थी दिल्ली में।चलते चलते अचानक एक आदमी अपना बटुआ गिरा देगा।ऐसा जान पड़ता है मानो अनजाने में उससे ऐसा हो गया हो।पीछे से दूसरा आकर उसे उठा लेगा।तबतक एक तीसरा भी प्रकट हो जायेगा और देखने लगेगा कि उस बटुए में क्या है।इस क्रम में दोनों आपस में झगड़ा करने का अभिनय करेंगे।फैसला करवाने के लिए पास के किसी राहगीर के पास जाएंगे और कहेंगे कि इस बटुए में सोना निकला है।दिखा भी देंगे।फिर बंटवारे के नाम पर आपको प्रलोभन देंगे कि इस सोने को एकदम मिट्टि के भाव बेच रहे हैं आप खरीद लें।वस्तु देखने में सोना है प्रतीत होगी पर वास्तव में नकली सोना होता है।यह सब कुछ सुनियोजित ढम्ग से किसी यात्री को लक्ष्य करके किया जाता था।इस झांसे में कई लोग फंस कर धोखा खा जाते हैं।ऐसा अब भी होता है पर प्रकार बदल गया है।मामाजी को भी लक्ष्य करके ऐसी विसात बिछाई गई।सोना गिरा और लोग इसे लेकर मामाजी के पास बेचने का बहाना करके आए। ाांमाजी ने ऐसे हतकंडे बहुत देखे थे।उन्होंने उनपर दोहरी चाल चली।पहले से ही सोचकर बैठे थे कि चार पर तो भारी पड़ते है थे एक दो और आ जाएं तो कोई बात नहीं।इनको क्या ठगते।मामाजी ने उन दोनों को पकड़ लिया और सोना छीन लिया यह कहते हुए कि जिसका बटुआ गिरा था वह मेरा भाई है।लाओ इसे मुझे देकर चलता बनो वर्ना बहुत मार मारूंगा।
        अब बारी उन ठगों की थी हैरान होने की।लेकिन ठग तो ठग ही ठहरे।वे एक और हथकंडा चले, पुलिस को बुलाने की।पुलिस के वेष में उनका अपना ही आदमी था।धौंस एवं घूसों की बौछार चली पर जब तीनो को दबोचे मामाजी उनपर चढ़ बैठे तो ठगों ने हाथ जोड़ लिया और मामाजी से माफी मांगत हुए वहां से रफूचक्कर  हो गए।
        बहुमुखी प्रतिभा के तो थे ही, कला के साथ साथ ज्योतिष एवं तंत्र–मंत्र का भी ज्ञान रखते थे और समय असमय इस विद्या के सहारे लोगों की मदद भी किया करते थे।अच्छे ज्योतिष ज्ञान के धनी होने के कारण लोगो लोगों के खोए हुए सामान अथवा गुम हुए लोगों का लगभग सटीक पता बता देते थे।इनके इस सेवा कार्य ने एक दिन उनको जेल की भी यात्रा करवा दिया।हुआ कुछ यूं कि एक दिन एक सज्जन जिनका लड़का कहीं खो गया था, अपने बच्चे के बारे में पता लगाने के लिए इनके पाास आए।मामाजी ने बच्चा किस शहर में है तथा कि स्थान पर है गणना करके बताया।लोगों को बच्चा मिल गया।बच्चे के पिता ने मामाजी पर अभियोग लगाया कि उसे 'मामाजी' ने ही गायब करवा दिया था।बेचारे बुर फंसे।बाद में किसी तरह से छूट कर आए।
        कहते हैं कि कलाकार का दिल बहुत बड़ा होता है पर उम्र के ढलान से उसकी प्रसिद्धि,तेज एवं नाम सबकुछ ढलने लगता है। वक्त के साथ अंतिम पड़ाव के कुछ दिनों पहले मधुमेह के सिकंजे में ऐसा फंसे कि एक समय आया जब दशा खराब हो गई,सही चिकित्सा के अबाव में असमय ही दुनियां से कूच कर गए,पर यादों के झरोखों में लगता है जैसे अब भी कहीं आसपास ही बैठे हों अपने बीते समय के किस्से सुनाते हुए।