सर्प दंश की चिकित्सा को समर्पित एक नेत्र रोग विशेषज्ञ : डॉ दयाल बंधु मजुमदार
उन दिनो
मैं कलकत्ता में था. बात 2002 की है जब एक ‘फ्री नेत्र चिकित्सा’ शिविर
में मैं अपने एक दोस्त के साथ शामिल होने गया था. वही मेरी मुलाकात डॉ दयाल बंधु
मजुमदार से हुई थी.उन दिनो वो बैरकपुर के पास ही एक सरकारी अस्पताल में कर्यरत थे.
बडे ही सरल इंसान लगे.पहली मुलाकात में ही हम दोनो की अच्छे दोस्त बन गये. समय समय
पर हमरी मुलाकात होती रहती थी.मैं उनसे नेत्र रोग से आंखो की सुरकशा के उपाय पर
विवेचना करता तथा कुछ गुर सीखता था.कुछ दिनो के बाद ही उनका स्थानांतरण हाबरा
हॉस्पिटल में हो गया.
हाबरा का इलाका ग्रामांचल में आता है.वहाँ
विशेशज्ञ चिकित्सक को भी एक दिन इमर्जेंसी में डुटी देनी पड्ती है.यही से सर्प दंश
की चिकित्सा की ओर उनका मन लग गया.उन्होने देखा की बंगाल में ग्रामंचल में सर्पदंश
से होने वाली मौत की संख्या मलेरिया अथवा अन्य किसी बिमारी से होने वाली बिमारियो
से कही बहुत ही ज्यादा है. हैरानी की बात उन्हे और भी ज्यादा लगी जब उन्होने पाया
की एम बी बी एस में पढाये जाने वाले पाठ्यक्रमो में भारत में पाये जाने वाले सर्पो
तथा उनके दंश की चिकित्सा का कोई जिक्र नही है और यही कारण है कि हमारे देश में आम
तौर पर चिकित्सक सर्प दंश की चिकित्सा में तुरंत कोई सही निर्णयनही कर पाते हैं
तथा मौते हो जाती हैं. उन्होने इसके लिये पह्ले खुद ही अध्ययन किया और फिर पश्चिम
बंगाल में पाये जाने वाले सर्पो की प्रजातियो, उनके दंश की प्रक्रिया,पह्चान तथा किये जाने वाले चिकित्सा
प्रोटोकोल का एक सीडी बनाया तथा उसे अपने खर्चे पर देश के विभिन्न चिकित्सा संस्थानो
में तथा विभिन्न चिकित्सा कॉलेजो में भेजना शुरू किया. जैसा की सर्वविदित है कि
कुछ नया करने की शुरूआत यदि करते हैं तो हो सकता है कि आपके बात को लोग ना भी माने
या फिर आपकी हंसी उडाये,यही उनके साथ भी हुआ.पर वे निरंतर अपने इस प्रयास में लगे रहे. इसके लिये
उन्होने ‘डॉ इयन सैम्प्सन’ के चिकित्सा
प्रोटोकोल का अनुसरण किया जो की भारत सरकार के ‘स्नेक बाइट
एड्वाईजर’ हैं. उनके इस प्रोटोकोल का स्वागत अह्मदबाद के
चिकित्सक ने किया और उनसे इस विशय में और भी जानकारी मांगी. उनके इस प्रोटोकोल में
मुझे जो सबसे हैरान कर देने वाली बात लगी वो थी करैत के दंश के बारे में थी जिसमे
बताया गया था कि कई बार देखा जाता है कि रोगी में सर्प दंश के कोई लक्शन नहीं होते
पर मरीज के अंदर सुस्तपन हो जाता है. ऐसा लगता है जैसे उसने नशा कर रखा हो. या कभी
कभी उसके पेट में दर्द से शुरूआत होगी, धीरे धीरे उसको आंखो की पलके बुझने लगेंगी.यही मौका है जब कि चिकित्सक
अपनी सूझ बुझ से यह पता करे कि इस लक्शन के प्रकट होने से पह्ले क्या मरीज खेतो
में गया था या फिर रात को जमीन पर सोने की बात पता चले. यदि ऐसा कुछ है तो हो सकता
है कि उसे करैत ने काटा हो क्योकि करैत के दंश में उसको दंतो के निशान नही पडते. इस
समय यदि मरीज को सही रूप में जॉच कर सही समय पर एवीएस की सही मात्रा दे दिया जाये
तो मरीज की जान बचाई जा सकती है. अपने इस प्रोटोकोल का पालन करके उन्होने कई मरीजो
को बचाया.
समय समय पर विभिन्न स्वयंसेवी संस्थाओ के
साथ मिलकर आम जनता में जागरूक्ता फैलाने के लिये सेमिनार तो कभी डॉक्टर के लिये
कर्यक्रम करते रहे तथा समय समय पर प्राप्त रिपोर्ट और इस नये प्रोटोकोल से होने
वाली सफलताओ को लोगो को विभिन्न संचार मध्यमो जैसे कि ई मेल, वेबसाइट के माध्यम से लोगो
को बताते रहे. समय समय पर गवर्नर को ज्ञापन भी देते रहे कि एमबीबीएस पाठ्यक्रम में
भारत मोन होने वाले सर्प दंश एवं इसकी चिकित्सा पद्धति को शामिल किया जाय. उनका यह
प्रयास रंग लाया और बंगाल में एमबीबीएस पाठ्यक्रम में इसे शामिल कर लिया गया. अभी
हाल ही में उन्होने ‘स्नेक बाईट ट्रीट्मेंट प्रोटोकोल’ का पोस्टर डिजाईन किया, बंगाल सरकार ने इसका
अनुमोदन भी किया तथा यह आदेश पारित हुआ कि इसे राज्य के हर स्वस्थ्य केंद्र पर
लगाया जाय जिससे कहीं भी चिकित्सक को सर्पदंश के मरीज को बचाने मे देर ना लगे.इस
पोस्टर का हिन्दी अनुवाद भी करवाकर उन्होने एक बहुत ही अच्छा काम किया है. फेस बुक
पर भी उन्होंने यह सूचना डाल रखा है कि यदि कोई चाहे तो उनसे मेल द्वरा यह पोस्टर
मंगवा सकता है. इस विषय पर दो वेबसाईट है जिसपर नया नया कुछ भी होता है पोस्ट करते
रह्ते हैं.वेबसाईट हैं www.kalachkarait.webs.com www.50000snake.webs.com .अब तो मरीजों के घर वाले भी
उनसे फोन पर राय मांगते हैं. उनसे dayalbm@gmail.com पर इस विषय पर बात की जा
सकती है.
उनके
कार्यों की प्रशंशा Indian
express ने अपने एक विशेष कॉलम में किया है. समय समय पर बंगाल की
कुछ संस्थाओं ने भी उनका सम्मान किया है. आज
मानव हित में है कि उनके बनाये इस प्रोटोकोल का अनुसरण करके भारत के हर राज्य में
सर्प दंश की सही रूप मेँ चिकित्सा की जाये. इससे हर साल सर्प दंश से मरने वाले
लाखों लोगों को बचाया जा सकता है.
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टीम हमारीवाणी